अपहरण - ढीले निर्देशन से मौका गवाया

 अपहरण 2005 

द्वारा 

प्रकाश झा 



पात्रों में दम था । कहानी तो एकदम विनर था । किडनेपिंग उद्योग और उसके राजनीति से ताल्लुकों पर प्रकाश डालती फिल्म जिसमें अजय देवगन, नाना पाटेकर और मोहन अगाशे जैसे कलाकारों ने काम किया हो, वह कैसे गड़बड़ा सकती है । परंतु कमजोर संवादों, ढीली कैंची और असपष्ट कथानक के चलते अपहरण एक महान फिल्म बनने से चूक गयी । बिहार पर फिल्म में बन रही है तो जाति से परे नहीं हो सकती । धर्म का तड़का डालना था तो खुल कर डालना था । कौन किस से क्यूँ रूठा, यह भी साफ-साफ नहीं बताया है । यशपाल शर्मा और मुकेश तिवारी ने बढ़िया काम किया है । अयुब खान भी जंचे हैं । बिपाशा का कोई काम नहीं है । मज़ा आते-आते रह गया । इसके लिए प्रकाश झा स्वयं जिम्मेदार हैं । "एसपी तुम जनता के नौकर हो, और हम जनता के सेवक हैं" - महत्वपूर्ण समय पर नाना द्वारा मारा गया एक हल्का डायलोग है । सेवक के स्थान पर प्रतिनिधि होना चाहिए था । इस तरह की चूक कई जगह दिखाई दी । फिल्म अंततः चौपटा ही गयी । 


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