पिप्पा - जियादा अंडर्प्ले वाली ढीली-सी वॉर फिल्म

 पिप्पा 2023

द्वारा 

राजा कृष्ण मेनन 



फिल्म बने जंग पर तो उसमें अत्यधिक हिंसा और छातीकूट राष्ट्रवाद भर जाने का खतरा विद्यमान रहता है । पिप्पा बहुत ध्यान रख कर उस गली नहीं उतरती पर ऐसा करने की प्रक्रिया में कुछ ज्यादा अंडर्प्ले कर जाती है । भारत बनाम पाकिस्तान 1971 पूरी शिद्दत के साथ लड़ा गया खूनी युद्ध था और उसमें व्यर्थ की डाइलॉगबाज़ी और 'कूल' खेलने का स्कोप कम ही था । इसलिए जंग की वीभत्सता और चरम राष्ट्रवादिता के माहौल को किनारे रख कर उस समय की कहानी को सार्थकता से बयान नहीं किया जा सकता । 

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पिप्पा देखने-योग्य फिल्म ही न हो । ब्रिगेडियर बलराम मेहता ने द बरनिंग चेफ़ीस  नाम से एक किताब लिखी है जो उनके पारिवारिक और इकहत्तर के युद्ध के अनुभवों पर आधारित है । वे स्वयं 45 केवेलरी रेजीमेंट का हिस्सा थे और पिप्पा टेंक के संचालक थे । फिल्म में गरीबपुर के युद्ध को कवर किया गया है जिसमें मेजर दलदित सिंह नारंग 'चीफ़ी' वीरगति को प्राप्त हो गए थे । पिप्पा नाम दरअसल आया है घी के पिप्पे से जिसकी तरह पीटी-76 टैंक पानी की सतह पर तैर जाता था । 

ईशान खट्टर ने कैप्टन बलराम मेहता के तौर पर सधा हुआ लेकिन सपाट काम किया है । प्रियान्शु पेनयूली राम मेहता के किरदार में कुछ ज्यादा ही सिरीयस है ।मृणाल ठाकुर भयंकर क्यूट लेकिन क्रिप्टोग्राफर के रोल में जरूरत से ज्यादा पारंगत लगी है । मतलब ऐसा तो नहीं हो सकता न कि सभी कोड उसकी मौजूदगी में उसी के सयानेपन से डिकोड किए गए हों । बाकी कास्ट इंक्लुडिंग सोनी राज़दान हवा खाने के लिए ही है । फिल्म में कोई ड्रामा नहीं है , सब कुछ बस होता चला जाता है । शुरुआत में थोड़ा ह्यूमर ठूँसा गया है पर बात बन नहीं पायी । कहानी कितनी हद तक सही है कह नहीं सकते । हाँ इतना अवश्य है कि मेहता के पिता और चार भाई सेना में थे और बहन डेन्टिस्ट थी । बाकी हिन्दी सिनेमा है, सब चलता है । लेकिन फिल्म देखकर जोश नहीं आता, भारतीय सेना पर गर्व भले होता हो । ईशान खट्टर को खारिज करना मुश्किल है, और मृणाल आज भी अनारदाने सी ताजगी का एहसास करवाती है । जवान और पठान के युग में पिप्पा जैसा सिनेमा कोई बना रहा है, इतने भर के लिए ही उसे शुक्रिया !


#primevideo #pippa #mrinalthakur #ishankhattar #1971

Comments