TAANDAV - Another Soggy Biscuit

 TAANDAV 2020

by

ABBAS ALI ZAFAR


तांडव

 

ऐसा लगता है कि लेफ्ट-लिब्रल गेंग का अब प्रोपेगेंडा में दिल नहीं लगता । तांडव सिरीज़ में थोड़ी बहुत कोशिश ज़रूर की है थोड़ा नेरेटिव चलाने की अब्बास और जीशान ने , पर शिद्दत के साथ नहीं । बात कहीं से कहीं पहुँचती नहीं , चोट दिल को लगती नहीं ।

कहीं तो कोई भूमि अधिग्रहित हो रही है , किसान सड़कों पर जमा हैं , फिर पुलिस तीन मुसलमान लड़कों को चुन कर ठोक देती है । क्यूँ ? कारण क्या हुआ? शायद बस इतना ही कि अब्बास भाई को दिखाना था कि किसान आंदोलन में मुसलमान मारे जा रहे हैं ।

खैर नेताओं का कचरा इस सिरीज़ में जो किया सो किया, पुलिसवालों को भी बड़ी बोरियत से पेश किया है । एक-दो बेवकूफ़ टाइप के सीन हैं हिन्दू भगवनों को लेकर , जिनहे देखकर क्रोध कम तरस अधिक आता है । हल्के टाइप के डायलॉग हैं जैसे सड़क पर चलने वाले हर शख्स पर पाबंदी है, किसान अपनी मर्ज़ी से खेत में अनाज भी नहीं बो सकता इत्यादि ।

चुनाव हुए हैं , नतीजे आ गए , एक पार्टी चुनाव जीत गयी । छात्र बड़े गर्व से कह रहे हैं कि वोट देने वाली जनता के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे । सब जानते हैं चुनाव कैसे जीते हैं । सवाल किए जाने पर जीशान बोलता है- सवाल वोटिंग पर उठा रहा हूँ , लोकतन्त्र पर नहीं । आज़ादी , आज़ादी चिल्लाती इस सिरीज़ में कोई दम नहीं लगा ।

डिंपल कापड़िया, सैफ, तिगमांशु धूलिया, कुमुद मिश्रा के होते हुए बेहतर काम हो सकता है । गौहर खान बहुत कडक दिखी हैं । सारा जेन डायस मिसकास्टिंग हैं । संध्या मृदुल , डीनो मोरिया, कृतिका कामरा बिलकुल बोर हैं। जीशान ने ठीक-ठाक काम किया है । सुनील ग्रोवर पता नहीं क्या कर रहा है । तांडव बहुत ही ढीला शो निकला । ठीक से गालियां देने का भी मन नहीं कर रहा ।   

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