Guftagoo E10- With Naseeruddin Shah


गुफ्तगू E 08
विथ नसीरुद्दीन शाह 



नसीर  साहब का अंदाज़-ए-बयान किसी प्रोफेसर जैसा है । ऐसे बहुत ही कम कलाकार हैं जो इतने प्रभावशाली और साफ़गोई भरे अंदाज़ में अपनी बात रखते हैं –गुलज़ार,पंकज त्रिपाठी ,एक हद तक जावेद साहब और शायद महेश भट्ट । बाकी लोगों की बातों में बनावटीपन है ,पर नसीर में नहीं । उनमे  आज भी मेरठ-सरधना के अफगानी नवाबों वाला पुट है और अपनी बात को बहुत सीधे कह डालने का हुनर भी ।
उनका कहना है की यह बात बेमानी है की कोई एक्टर किरदार ही हो सकता  है । नसीर कहते हैं कि मैं मैं ही रहता हूँ ,किरदार से अलग ,उसे देखता हूँ ,और अगर उसी में समा गया तो फिर डाइरेक्टर या पटकथा की  दिशा में कैसे चलूँगा ? पर क्या फिर मैं इंप्रोवाइस नहीं करूंगा ? इंप्रोवाइजेशन क्या यही नहीं होता की कलाकार स्क्रिप्ट से बांध कर न रहे और  वही करे जो किरदार की डिमांड हो ? नसीर की इस बात को समझ पाना थोड़ा कठिन है ।
इरफान के साथ चर्चा में उनके बचपन कि बातें ,पिता,नाना और मामूओं के साथ रिश्ते और आसपास के लोगों से चरित्र  समझने की कला सीखने जैसे पक्ष सामने आए । बोर्डिंग स्कूल में नसीर के दोनों बड़े भाई भी थे । पढ़ाई में कमजोर नसीर को ड्रामा में मौका नहीं मिलता था ,पर खेलकूद और पढ़ाई में अव्वल बड़े भाइयों को मिलता था ,शायद यही टीस उनके अंदर हमेशा बनी रही । अपने पिता के साथ कठिन सम्बन्धों की भी नसीर ने चर्चा की ।
नसीर बड़ी साफ़गोई से हॉलीवुड के सामने हिंदुस्तानी फिल्मों क कमजोर पाते हैं ,खासकर बचपन में । अब उनका मानना है की स्थिति थोड़ी बहतर हुई है ,पर फिर भी अंतर बहुत है ।
नसीर बताते हैं कि एक अदाकार क्या है इसका इल्म उन्हे बहुत देरी से हुआ जब उन्होने श्रीराम लागू (जिनको वो विश्व का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता मानते हैं ) की आत्मकथा नीमाड़ (बोझा ढोने वाला ) पढ़ी । यही एक एक्टर के काम कि सच्चाई है – वह किसी और के विचारों को जनता तक पहुँचाने का काम करता है-मसलन लेखक ,निर्माता या निर्देशक के । उसका काम स्टार बनना या खूबसूरत दिखना नहीं है ,बस इस संदेश को अपने प्रयासों से आगे पहुंचाना है ।
नसीर ने nsd को लेकर भी अपना असंतोष ज़ाहिर किया कि नेशनल न होकर ड्रामा स्कूल राज्यों के लेवल पर बनने चाहिए थे । इससे थिएटर जन जन में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो सकता था । इब्रहीम अलकाजी ,सत्यादेव दुबे और मनोहर सिंह के बारे में भी चर्चा की ।
इरफान और इक्का दुक्का अन्य को छोडकर nsd कलाकारों में उन्हे कोई अलग नहीं दिखाई देता । उनका कहना है कि सबका चलने ,बैठने और बोलने का अंदाज़ कुछ एक ही जैसा है ।
इस इंटरव्यू में नसीर ने सीधी बात की है ,जैसी वे हमेशा ही करते हैं । इरफान भी इसमे brecht,stainislavsky और bresson के बारे में काफी बात करते दिखे हैं । यह एक काफी जानकारीपरक साक्षात्कार है जिसमे नसीर ने बेबाकी से जवाब दिये हैं ।  

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